कल रात
कल रात,
अँधेरे हो चुके आंगन में,
लैम्प की मद्धम लौ,
रेडियो पे पुराने फिल्मो के गाने,
आकाश में निकला चाँद,
कभी छुपता, कभी निकलता,
झीनी बादलों से अठखेलिया करता,
तेरी याद दिला रहा था
कल रात,
बहुत बहुत सर्द थी, आती जाती हवाए,
तेरे साँस की खुशबू चुराए,
मेरे कम्बल के पास बैठी थी.
उन हवाओं की नरम धरकनें,
मुझे तेरी गीत सुना रहा था,
तेरे दुपट्टे को हुकर आई हवा
तेरी याद दिला रहा था
कल रात,
ख्वाबो में अनेक सिलसिले हुए
तमन्नाये जगी, मैंने समझाया
यादो ने पुराने जख्म उधेड़े,
एक दर्द उठा, हम रोये
उधरते टांके की उभरती टीस
तेरी बाते थपकिया देती मुझे सुला रही थी,
तेरी याद दिला रही थी...... कल रात
३ जुलाई २०१० (रात १ बजे )