आ रही मेरे सीने , से सदा है कोई
कराह रही इस्मे ,शायद दुआ है कोई
बेचैन रातों में ,आवाज़ ये आती है
कई दीनो से तुझसे , खफा है कोई
सुना सुना सा लगता है, दील मेरा
छोड़ कर के इसे ,शायद गया है कोई
महब्बत की दुनीया,बड़ी अजीब होती है
दील कोई तोडे,और कहे बेवफा है कोई
ज़िन्दगी में कुछ ,अधुरा सा लगता है
पीछे छुट गया , एक लम्हा है कोई
रौनके-बज्म के लोग,भला क्या जानेंगे
मोहब्बत के शहर में,कितना तनहा है कोई
उनके पल्लू को ,कंधें से गीरा गयी है पर
क्या करे वो, बड़ी बेशरम हवा है कोई
जातें हो तो ज़रा ,संभल के रहना दोस्त
उनके शहर में , हर रोज लुटा है कोई
मेरे सीने में धधकते है शोले, अक्सर ही
मेरी बाँहों में आ के , पीघला है कोई
कभी अपने घरों में, भी आया जाया करो
'असर' उनमे भी ,देखना छुपा है कोई
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Wednesday, November 26, 2008
मैखाना
खुद बैठेंगे आ के ,घर में न छुपा के पीयेंगे
साकी तेरे मैखाने , में अब आ के पीयेंगे
नशा उसमे नहीं , उसके अंदाज़ में होती है
अब जामे-मोहब्बत ,आजमा के पीयेंगे
मह्फीलें रिंद में कभी ,तू भी तो हो शामील
तेरे पैमाने से पैमाना , टकरा के पीयेंगे
तू भी क्या सोचेगा , कीस लोग के थे साथ
तेरी आखिरी महफील , में हम छा के पीयेंगे
आपनी एक तस्वीर , तो छोड़ के जा जालीम
अकेले होंगे तो तेरी तस्वीर,को दीखला के पीयेंगे
अर्ज की उनसे जब,जामे शराब उठाने को 'असर'
दबे ओठों से कहते है , तुम्हे पीला के पीयेंगे
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साकी तेरे मैखाने , में अब आ के पीयेंगे
नशा उसमे नहीं , उसके अंदाज़ में होती है
अब जामे-मोहब्बत ,आजमा के पीयेंगे
मह्फीलें रिंद में कभी ,तू भी तो हो शामील
तेरे पैमाने से पैमाना , टकरा के पीयेंगे
तू भी क्या सोचेगा , कीस लोग के थे साथ
तेरी आखिरी महफील , में हम छा के पीयेंगे
आपनी एक तस्वीर , तो छोड़ के जा जालीम
अकेले होंगे तो तेरी तस्वीर,को दीखला के पीयेंगे
अर्ज की उनसे जब,जामे शराब उठाने को 'असर'
दबे ओठों से कहते है , तुम्हे पीला के पीयेंगे
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चिडिया शहर की ओर ...........
एक चिडिया सुबह उड़ चली शहर की और
कुछ ज्यादा दाने की आस में गाँव को छोड़
उसने सुन रखा था सहर में बड़े बड़े घर होते है
एक बड़ी सी ईमारत में बहुत सारे लोग रहते है
गाँव के घरो जैसी छोटी छोटी छतें नहीं होती
बहुत तरक्की हुई है, वहा रात नहीं होती
शहर की और उड़ते वक़्त चिडिया सोच रही थी
बहुत सारे लोग होंगे, तो बहुत सारे दाने होंगे
बड़े बड़े ईमारत में, बहुत कुछ मीलेगा
क्या मौसम होगा, जब रात में चाँद खीलेगा
बड़े वेग से,मन में असीमित उल्लास लीए
बीना रुके वो शहर की और उड़ती रही
शहर पहुच के उसने देखा
इमारते तो बहुत ही बड़ी बड़ी है
छतो के ऊपर भी घर बने हुए है
वह के लोग अनाजों को छतो पे नहीं सुखाते
रोटी भी बाज़ार में मील जाया कराती है
घरों में आंगन नहीं होते,
तुलसी के पेड़ पलास्टिक के डिब्बे में रखकर
घरों में रखे होते है ,
इतनी धुंध होती है की,चाँद नज़र नहीं आता
लोग बहुत तेज भागते है
रात में भी दीन की तरह जागते है
वह के लोग बहर के चिडियों को दाना नहीं डालते
उनके लीए अलग सा पिजरा होता है घरों में,
वे लोग उसी पिजरें के परींदे को रोज दाना देतें है
चिडिया बड़ी दुविधा में थी,
गुलाम बने या आधा पेट खाकर, आज़ाद रहे
सुबह से शाम हो गयी , उसे अनाज का एक दाना भी न मीला
शाम को चिडिया वापस गाँव की और उड़ चली
गाँव के रास्तें में एक वन्हरण सर पे टोकरी भर अनाज उठाये,
आपने घर को जा रही थी,
चिडिया ने दुबकी लगाकर चोच भर दाना उठाया
और उड़ चली उस आम के पेड़ पे जहा उसके बच्चे,
माँ के आने की आस में बैठे थे
चिडिया ने उसी दाने में खुद खाया, और बच्चो को भी खीलाया
फीर उसने अपने बच्चो से कहा ,
मैं शहर गए थी, वह पे इंसान नहीं रहते
कभी उस तरफ नहीं जाना, फीर चाँद को निहारते हुए सो गए
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कुछ ज्यादा दाने की आस में गाँव को छोड़
उसने सुन रखा था सहर में बड़े बड़े घर होते है
एक बड़ी सी ईमारत में बहुत सारे लोग रहते है
गाँव के घरो जैसी छोटी छोटी छतें नहीं होती
बहुत तरक्की हुई है, वहा रात नहीं होती
शहर की और उड़ते वक़्त चिडिया सोच रही थी
बहुत सारे लोग होंगे, तो बहुत सारे दाने होंगे
बड़े बड़े ईमारत में, बहुत कुछ मीलेगा
क्या मौसम होगा, जब रात में चाँद खीलेगा
बड़े वेग से,मन में असीमित उल्लास लीए
बीना रुके वो शहर की और उड़ती रही
शहर पहुच के उसने देखा
इमारते तो बहुत ही बड़ी बड़ी है
छतो के ऊपर भी घर बने हुए है
वह के लोग अनाजों को छतो पे नहीं सुखाते
रोटी भी बाज़ार में मील जाया कराती है
घरों में आंगन नहीं होते,
तुलसी के पेड़ पलास्टिक के डिब्बे में रखकर
घरों में रखे होते है ,
इतनी धुंध होती है की,चाँद नज़र नहीं आता
लोग बहुत तेज भागते है
रात में भी दीन की तरह जागते है
वह के लोग बहर के चिडियों को दाना नहीं डालते
उनके लीए अलग सा पिजरा होता है घरों में,
वे लोग उसी पिजरें के परींदे को रोज दाना देतें है
चिडिया बड़ी दुविधा में थी,
गुलाम बने या आधा पेट खाकर, आज़ाद रहे
सुबह से शाम हो गयी , उसे अनाज का एक दाना भी न मीला
शाम को चिडिया वापस गाँव की और उड़ चली
गाँव के रास्तें में एक वन्हरण सर पे टोकरी भर अनाज उठाये,
आपने घर को जा रही थी,
चिडिया ने दुबकी लगाकर चोच भर दाना उठाया
और उड़ चली उस आम के पेड़ पे जहा उसके बच्चे,
माँ के आने की आस में बैठे थे
चिडिया ने उसी दाने में खुद खाया, और बच्चो को भी खीलाया
फीर उसने अपने बच्चो से कहा ,
मैं शहर गए थी, वह पे इंसान नहीं रहते
कभी उस तरफ नहीं जाना, फीर चाँद को निहारते हुए सो गए
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