कही पुराने पुल पे ,
चुपचाप सतर्क चलते , तेज कदम
फिज़ाओं में चिपके मेरे एहसास ,
मुझे ढूढती, मुझे सोचती ,
मुझे महसूस करती,
कल रात के सपनो में खोयी,
सुनी , लाजबाब, आँखें,
हर रोर सुबह, उसी पुल पे
रोज आते वक़्त , जाते समय
मेरे वजूद को ढूंढती , मुझसे दूर
मुझसे मिलने रोज मेरे इंतज़ार करती
हवाओ में मुझे टटोलती आँखें
कही दूर , दुनिया के किसी और कोने में
अपने कमरे में बैठा हुआ
सोचता , कोई मुझे याद कर रहा भी होगा
कोई मुझे सोच रहा भी होगा,
चुपचाप बिस्टर पे लेटे , सुने कमरे में
बेजान सी तस्वीर को देखता
सोचता , रोता, पुँरानी बातो को याद कर हँसता ,
ख्वाब बुनते मेरी बेजान सी आँखें
Friday, February 19, 2010
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