Monday, April 13, 2009

हिलोर मारे........

सावन का बयार बड़ा जोर मारे रे
मन डोल डोल के हिलोर मारे रे

हम यही बैठे रहे
गुमान में ऐठे रहे

हवा आ के गुजर गई
में देखता रहा किधर गई

पेड़ को जोड़ जोड़ ,झकझोर मारे रे
मन डोल डोल के , हिलोर मारे रे

ख्याल में खोये रहे
पुआल पे सोये रहे

आस्मां जब ठहर गई
अंधिया जब उखड़ गई

मोर सब वन के , नाचे जोर मारे रे
मन डोल डोल के , हिलोर मारे रे


तख्त पे परे रहे
नींद में गरे रहे

बादले गरजती रही
अस्मां बोलती रही

अस्मां का श्रृंगार बड़ा , बेजोर लगे रे
मन डोल डोल के , हिलोर मारे रे

पेड़ सब डटे रहे
एक दुसरे से सटे रहे

अंधिया जब विकल हुई
चिर के सब निकल गई

पेड़ सब झूम झूम , मरोर मारे रे
मन डोल डोल के , हिलोर मारे रे

भवर वही पड़े रहे
फूल से सटे रहे

उन्हें कुछ ख़बर नही
कब शाम से शहर हुई

रस चूस चूस के , वह सब तोड़ मारे रे
मन डोल डोल के , हिलोर मारे रे




This work by adi223sonu.blogspot.com is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License.

No comments:

Post a Comment