Saturday, January 24, 2009

बहूत है

तू शमा है , और तेरे यहाँ परवाने बहुत है
सुना है तेरे शहर में ही, तेरे दीवानें बहुत है

वो तो हम है जो तेरे गम छुपाने को पीते है
वरना इस दुनिया मैं पीने के बहाने बहुत है

क्या करना शराबो का जो तू आँखों से पिलाती हो
फिर भी तेरे शहर में क्यू , मैखाने बहूत है

हमने पीना छोडा है , पिलाना नही छोडा
कभी आ के देख मेरे घर में पैमाने बहुत है

अब कोई साथ चलता है तो डर जाता 'असर'
तेरे गली को छोड़ तेरे शहर में वीराने बहूत है



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6 comments:

  1. क्‍या बात है बेहतरीन भाई

    वो तो हम है जो तेरे गम छुपाने को पीते है
    वरना इस दुनिया मैं पीने के बहाने बहुत है

    एक शेर क्‍या मैं भी अर्ज करूं अगर इजाजत हो आपकी

    वो तो हम हैं जो तेरे बलाग पर कमेंट करते हैं

    वरना इस दुनिया में 'असर' कमेंटर बहुत हैं

    हा हा हा नहीं बनी मुझसे बात

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  2. आज आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए रूप, नए अर्थ और व्यापक दृष्टि मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकें.....
    कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें.
    http://www.hindi-nikash.blogspot.com

    सादर-
    आनंदकृष्ण, जबलपुर.

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  3. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

    एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

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  4. बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  5. हमने पीना छोडा है , पिलाना नही छोडा
    कभी आ के देख मेरे घर में पैमाने बहुत है

    बहुत सुंदर है...............
    स्वागत है आप का

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